
भारत और चीन के कोर कमांडरों की 13वें दौर की वार्ता विफल हो गई है। रविवार को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की साइड वाले मोल्डो में करीब नौ घंटे तक चली वार्ता का कोई नतीजा नहीं निकला। दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच वार्ता में विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी भी शामिल होते हैं और वार्ता के बाद सरकार की ओर से बयान जारी किया जाता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस बार दोनों देशों की सेना ने बयान जारी किया। यह अपने आप में इस बात का संकेत है कि 13वें दौर की वार्ता सिरे नहीं चढ़ी है। दोनों देशों ने वार्ता विफल होने के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगाया है। भारत ने कहा है कि वार्ता इसलिए विफल हुई क्योंकि चीन ने उसके कई सकारात्मक सुझावों को मानने से इनकार कर दिया। India china border dispute
असल में भारत ने मुख्य रूप से दो बातें चीन के सामने रखी थीं, जो पहले भी रखी जा रही थीं। भारत ने कहा कि 1993 में दोनों देशों के बीच जो संधि हुई थी और सहमति बनी थी, चीन ने एकतरफा तरीके से आक्रामक बरताव करते हुए उसका उल्लंघन किया है, इसलिए उसे इसका पालन करना चाहिए। भारत ने दूसरी बात मई 2020 से पहले की यथास्थिति बहाल करने की कही थी। चीन इस पर सहमत नहीं है। नौ घंटे की वार्ता के बाद चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की पश्चिम थिएटर कमान ने अपने बयान में कहा है कि ‘भारत अतार्किक और अव्यवहारिक मांग कर रहा है, जिसकी वजह से समझौता वार्ता मुश्किल हो गई है’।
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सोचें, भारत मई 2020 की यथास्थिति बहाल करने की मांग कर रहा है तो चीन को यह अतार्किक और अव्यवाहारिक लग रहा है! इतना ही नहीं चीन ने चेतावनी देने के अंदाज में यह भी कहा है कि ‘भारत हालात का गलत आकलन न करे और सीमा पर स्थायी शांति के लिए चीन के साथ मिल कर काम करे’। इससे चीन की मंशा जाहिर हो गई है। वह पीछे नहीं हटने वाला है और चाहता है कि भारत उसकी बात मान कर उसके हिसाब से काम करे।
इस बात को समझते हुए भारत को अपनी सैन्य रणनीति भी बनानी है और कूटनीतिक योजना भी बनानी है। इसके लिए सबसे पहले भारत को यह समझना होगा कि पिछले डेढ़ साल में उसने क्या गंवाया है। भारत अब तक इस बात से इनकार करता रहा है कि चीन ने घुसपैठ की है और भारत की सीमा में घुस आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वी लद्दाख में सीमा के हालात पर विचार के लिए पिछले साल सर्वदलीय बैठक बुलाई थी तब उन्होंने यह वाक्य कहा था कि ‘न कोई घुसा है और न कोई घुस आया है’। भारत को सबसे पहले इस मानसिकता से निकलना होगा।
इस सचाई को स्वीकार करना होगा और देश के नागरिकों को बताना होगा कि चीन ने भारत की जमीन कब्जाई है। भारत सरकार जब तक नागरिकों से सचाई छिपाती रहेगी तब तक चीन को यह मौका मिला रहेगा कि वह भारत की सीमा में घुसपैठ करे। आखिर सेना प्रमुख जनरल मुकुंद मनोज नरवणे ने भी स्वीकार किया है कि ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बड़े पैमाने पर चीन की तरफ से आधारभूत ढांचे का निर्माण किया जा रहा है, इसका मतलब है कि वो लोग वहां टिकेंगे। यदि वो लोग वहां टिकेंगे तो हम भी वहां डटे रहेंगे’।
सेना प्रमुख ने कहा नहीं लेकिन यह लगभग स्पष्ट है कि चीन हमारी तरफ घुस पर बैठा है और निकलने को राजी नहीं है। इसलिए भारत को लंबे समय की सैन्य रणनीति बना कर वहां टिकना होगा और अपनी आधारभूत संरचना को मजबूत करना होगा ताकि जरूरत पड़ने पर चीन का जवाब दिया जा सके। यह इसलिए जरूरी है ताकि चीन हमारी और जमीन में घुसपैठ न कर सके। ध्यान रहे चीन ने एकतरफा और आक्रामक रवैए से मई 2020 की यथास्थिति को बदला है। वह पूर्वी लद्दाख में उत्तरी सिरे पर देपसांग के मैदानी इलाके में, मध्य में गोगरा हॉट स्प्रिंग पर और दक्षिण पूर्व में बिल्कुल तिब्बत की सीमा के पास डेमचॉक में भारत की सीमा में घुस कर बैठा है, जिसकी वजह से वास्तविक नियंत्रण रेखा खिसक कर भारत की तरफ आ गई है। इन्हीं तीन जगहों से पीछे हटने के बारे में 13वें दौर की वार्ता हुई। चीन ने वहां से पीछे हटने से इनकार कर दिया है। इस वजह से भारत को भी इस इलाके में अपनी तैनाती बनाए रखनी होगी ताकि चीन और अंदर न घुस सके।
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असल में चीन को इन तीन इलाकों से पीछे नहीं हटना है। उसने पहले की वार्ताओं में पैंगोंग झील के पास से सैनिक हटाए थे लेकिन उसमें भी उसका एक मकसद था, जो उसने हासिल कर लिया। हैरानी की बात है कि चीन से बार बार धोखा खाने के बाद भी भारत के सैन्य कमांडर पैंगोंग झील के दक्षिण सिरे से पीछे हटने और कैलाश पर्वत शृंखला में रेचिंग ला और रेजांग ला से नीचे उतरने पर राजी हो गए, जिस पर पिछले साल अगस्त के आखिर में भारत ने नियंत्रण कर लिया था। चीन को हैरान करते हुए भारतीय सेना पैंगोंग झील के दक्षिणी सिरे पर और कैलाश पहाड़ी पर पहुंच गई थी। इससे भारत को बड़ा स्ट्रेटेजिक एडवांटेज मिला था। शुरुआती दौर की वार्ता में चीन ने ऐसा सद्भाव दिखाया कि भारत इन दोनों जगहों से पीछे हटने को राजी हो गया और अपनी एडवांटेज गंवा दी। जैसे ही भारतीय सेना दोनों जगहों से पीछे हटी, चीन ने बाकी जगहों से पीछे हटने से इनकार करना शुरू कर दिया।
सेना प्रमुख ने चीन के लंबे समय तक टिकने की जो भविष्यवाणी की है वह सिर्फ पूर्वी लद्दाख के लिए नहीं है। अभी पिछले दिनों चीन के सैनिक अरुणाचल प्रदेश के तवांग में घुस गए थे, जहां भारतीय सैनिकों से उनका आमना-सामना हुआ। दोनों के बीच टकराव की नौबत आ गई थी, लेकिन विवाद निपटाने की पुरानी व्यवस्था के तहत मामला सुलझाया गया। उससे पहले अगस्त के आखिर में चीन के सैनिक उत्तराखंड के बाराहूती में घुस गए थे और एक पुल तोड़ कर वहां से निकले। इसके अलावा चीन ने तिब्बत के आसपास सीमा पर छह सौ के करीब गांव बसा दिए हैं। इसका मकसद भी सीमा पर यथास्थिति में बदलाव करना और अपने लिए एडवांटेज की स्थिति बनाना है। वह अपनी तरफ ब्रह्मपुत्र नदी पर सबसे बड़ा बांध और पनबिजली परियोजना बना रहा है, जो इस नदी के डाउनस्ट्रीम में आने वाले भारत जैसे देश के लिए विध्वंसकारी हो सकता है। सो, भारत को चीन की इस चौतरफा घेराबंदी का जवाब देने की ठोस और लंबे समय की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।