

संतकबीरनगर। खलीलाबाद नगर पालिका परिषद के चुनाव की चल रही है। मामला परोक्ष रुप से चल रहे युद्ध का है तो बात महाभारत के युद्ध से शुरु करते हैं। इस महायुद्ध के दौरान कर्ण और अर्जुन दोनो ही आमने सामने थे। युद्ध में दोनों तरफ से वाण चल रहे थे। इस दौरान जब अर्जुन बाण मारते थे तो कर्ण का रथ सात मील पीछे चला जाता था। वहीं जब कर्ण वाण चलाता था तो अर्जुन का रथ साथ हाथ पीछे चला जाता था। जब अर्जुन का रथ सात हाथ पीछे चला जाता था तो रथ के सारथी केशव तुरन्त बोल उठते थे – ‘ कर्ण जैसा धनुर्धर दुनिया में कोई नहीं है।’ केशव के इन बचनों को सुनकर पार्थ ( अर्जुन ) का मन वितृष्णा से भर उठा। वह बरबस ही बोल उठे – मैं तीर मारता हूं तो कर्ण का रथ सात मील पीछे चला जाता है, जब कर्ण वाण मारता है तो मेरा रथ सात हाथ पीछे जाता है। इसके बावजूद आप कहते हैं कि कर्ण एक बड़ा धनुर्धर है। केशव को लगा कि यह पार्थ नहीं उसका अहंकार बोल रहा है। केशव मुस्कुराने लगे, कुछ बोले नहीं बल्कि रथ की पताका पर बैठे बजरंगबली को इशारा किया कि वह वहां से हट जाएं। इसके बाद सूर्यपुत्र कर्ण ने वाण मारा और अर्जुन का रथ लहराते हुए सैकड़ो मील पीछे चला गया। अर्जुन अवाक रह गया। श्री कृष्ण ने रथ को संभाला और युद्ध मैदान में लाए। पार्थ चिन्तित हो उठा, आखिर यह कैसे हुआ। केशव से हठ करने लगा तो उन्होने बताया, मैने कुछ किया नहीं है, केवल बजरंग बली को रथ की पताका पर से हटने के लिए कहा है। वह तुम्हारी पताका पर से उतर गए और तुम्हारा रथ सैकड़ो मील पीछे चला गया। वह भी उस स्थिति में जब मैं खुद तीनो लोकों का भार लिए हुए तुम्हारे रथ पर सवार हूं। अगर मैं सवार न होता तो तुम्हारे रथ का तो कहीं अता पता नहीं चलता।
महाभारत की इस कथा को बताने का तात्पर्य यह था कि इस चुनाव में नगर पालिका परिषद खलीलाबाद के निवर्तमान अध्यक्ष व भाजपा प्रत्याशी श्यामसुन्दर वर्मा के हार पर चल रही चर्चा की है। कुछ लोग कह रहे थे कि यह बहुत ही करारी हार है। इस बीच कुछ लोग इसे करारी हार कहने का प्रतिरोध कर रहे थे, इसे करारी हार कहने से बच रहे थे। प्रश्न यह उठता है कि इसे करारी हार आखिर क्यों न कहा जाय। वह खलीलाबाद नगर पालिका परिषद का चुनाव 14 हजार से अधिक वोटों हारे हैं। इतने अधिक वोटों से तो पूरे खलीलाबाद विधानसभा का चुनाव जीतने वाले विधायक अंकुर राज तिवारी नहीं जीते थे। वह भी मात्र 12 हजार वोटों से चुनाव जीते थे। जबकि वहां पर वोटरों की संख्या नगर पालिका के चार गुनी थी।
महाभारत की यह कथा क्यों सुनानी पड़ी इसके भी निहितार्थ हैं। श्यामसुन्दर वर्मा के नगर पालिका के चुनावी रथ की ध्वज पताका पर पूरी भारतीय जनता पार्टी बैठी हुई थी। वहीं सारथी के रुप में खलीलाबाद विधानसभा के विधायक अंकुर राज तिवारी खुद बैठे हुए थे। इसके बाद भी 10 हजार वोट पाना इस बात का परिचायक है कि धनुर्धर के बाणों में कोई दम ही नहीं था। धनुर्धर को अभ्यास के लिए पांच साल मिले थे, लेकिन धनुर्धर ने अभ्यास ठीक से नहीं किया था। अपनी सेना और अपने लोगों को मजबूत नहीं किया था। अपने पक्ष में लोगों को जोड़ा नहीं था। वह भी समाजसेवा के स्वर्णिम काल कोविड की आपदा के दौरान । पांच साल का समय मिले और इसके बावजूद कोई जनप्रतिनिधि अपने लोग न बना पाए, यह एक गंभीर बात है। यह घोर विफलता का परिचायक है । अगर यह सभी लोग साथ में नहीं होते तो नगर पालिका परिषद खलीलाबाद में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी श्यामसुन्दर वर्मा का यह रथ कहां गिरता इसका किसी को अनुमान नहीं लगा पाता ।
और अंत में …..
हार की जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं भाजपाई
हर भाजपा कार्यकर्ता को मर्माहत करने वाली इस हार से भाजपा की पूरी जिला कार्यकारिणी बच नहीं सकती है। खलीलाबाद नगर पालिका क्षेत्र में ही भाजपा के पास एक भारी भरकम फौज है। यह संख्या भी 10 हजार से कम नहीं होगी। जिन लोगों ने टिकट के लिए प्रत्याशी का चयन किया वह चयन टीम भी अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकती है। चाहे वह जिला स्तर के कार्यकर्ता हों, या फिर राज्य या राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी ही क्यों न हो। इसके पीछे कारण भी है। कारण यह है कि भाजपा के कार्यकर्ता व पदाधिकारियों के साथ आम जनता यह कह रही हैं कि केवल प्रत्याशी का चेहरा ही बदल दिया जाय तो भारतीय जनता पार्टी को इस चुनाव में जीतने से कोई रोक नहीं सकता था। जब आम कार्यकर्ता इस बात को समझ रहा है और कह रहा है। चुनाव के पहले से भी यह बातें चर्चा में आ गयी थीं, तो ऐसी स्थिति में यह बात पदाधिकारियों और नीति नियंताओं की समझ में क्यों नहीं आई।