
“पूर्वांचल के सर सैय्यद मास्टर अबुल वफा साहब का देहांत”
सिद्धार्थनगर / ब्यूरो रिपोर्ट

पूर्वांचल के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा जगत में क्रांति फूंकने वाले उर्दू ,हिन्दी, फारसी पर महारथ रखने वाले और अंग्रेजी जैसे विषय को बच्चों के दिल और दिमाग तक पहुंचाने वाले अंग्रेजी के महान एवं वरिष्ठ शिक्षक रफी अहमद किदवई जू०हा० ककरापोखर के संस्थापक मास्टर अबुल वफा साहब 3 जनवरी 2022 रात 12:31AM पर विभिन्न बीमारियों से जूझकर हमेशा के लिए अलविदा कह गए। मास्टर अबुल वफा साहब 1950 में ककरा पोखर मे पैदा हुए बचपन से इनको शिक्षा के क्षेत्र को प्रसारित करने का शौक था। इनका मकसद था” प्रत्येक बच्चा इल्म का सच्चा” इन्होंने अपना शैच्छिक करियर का प्रारंभ गांव के प्राइमरी से की उसके बाद पीपल्स इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट पास करने के बाद गोरखपुर यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी और उर्दू में एमए करने के बाद इसी यूनिवर्सिटी से बीएड भी किया।आप बहुत मेहरबान, सख्त और अनुशाषी थे और हमेशा गरीबों के सुख दुख में रहने वाले थे। आप पूरी जिंदगी पठन पाठन से जुड़े रहे और शिक्षा को ही अपना बोरिया और बिस्तर बना कर ककरापोखर और आस पास के सभी ग्रामीण इलाकों में शिक्षा, बुद्धि और सम्मान की आधुनिक चिंगारी को रोशन करने में मास्टर अबुल वफा साहब ने बहुत अहम किरदार अदा किया मास्टर अबुल वफा साहब की जिदंगी 60-70 के दशक में भारत के ग्रामीण इलाकों में एक ऐसे मुजाहिद की है जहां आप जैसे शिक्षा के दोस्त ने संसाधनों और सरोसामान की बहुत अधिक कमी के बावजूद अपने संघर्ष,लगन और सच्ची शिक्षा भक्ति और लगातार मेहनत से इन ग्रामीण इलाकों में मुल्क व मिल्लत की शैक्षिक व सामाजिक तस्वीर बदलने के लिए बहुत ही बेहतरीन ढंग से जमीनी स्तर से काम किया और सम्मान जनक एवं काबिल-ए-तारीफ नतीजे भी हासिल हुए हैं जिसके कारण आप और आप के मरहूम पिता हकीम अयूब साहब ही ने रफी अहमद किदवई जू०हा० ककरापोखर डुमरियागंज को अपने खून और जिगर से 1966 में उस समय सींचा जिस वक्त लोगों के रोटी और श्रम के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था साथ ही इन ग्रामीण इलाकों में कोई विद्यालय भी न था मास्टर साहब ने इसके विरुद्ध लड़ते हुए लोगों को शिक्षा के बारे में जागरूक करते हुए रफी अहमद किदवई जू०हा० ककरापोखर की स्थापना कर डाली , और 42 सालों तक स्वयं इसमें पठन पाठन का कार्य करते रहे और अपने ज्ञान से इलाके के बच्चों को लाभान्वित कराते हुए यहीं से प्रधानाध्यापक भी रहे। शिक्षा के क्षेत्र का इनका रणयुद्ध यहीं नहीं रुका और इन्होंने यह देखते हुए कि आसपास के बच्चों को मेट्रिक की शिक्षा के लिए कहीं दूर न जाना पड़े इसके लिए इन्होंने हामिद कासिम उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ककरापोखर की भी स्थापना 2005 में कर डाली। आज इन्ही के द्वारा बनाए गए इन संस्थानों से कई हजारों की संख्या में बच्चे शिक्षा प्राप्त कर के देश की बड़ी बड़ी विश्विद्यालों जैसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एवं जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय जैसी देश के उच्च संस्थानों में पठन पाठन का कार्य कर रहे हैं तथा यहां से शिक्षा प्राप्त करके बच्चे देश के सरकारी और प्राइवेट सेक्टरों में साथ ही विदेशों में भी खास कर खाड़ी देशों में बड़े बड़े पदों पर कार्यरत हैं। मास्टर साहब की नमाज-ए-जनाजा 3 जनवरी दिन सोमवार शाम 3:30 बजे ककरापोखर में मौलाना जावेद सनाबली( उस्ताद निस्वां कॉलेज कुशांठा, नाजिम जिया सलफिया ककरापोखर) ने पढ़ाया और ककरापोखर के कब्रस्तान में आपको मिट्टी के हवाले कर दिया गया।
आपके देहांत के बाद डुमरिया गंज इलाके के मशहूर और बड़े लोगों व बहुत अधिक संख्या में सियासी, सामाजी और रिश्तेदारों के अलावा मास्टर साहब के पढ़ाए हुए विद्यार्थियों ने दूर दूर से पहुंच कर जनाजे में शामिल हुए………. जिनमे
रामकुमार उर्फ चिंकू यादव( प्रत्याशी विधानसभा डुमरिया गंज), सलमान मालिक पुत्र कमाल यूसुफ( पूर्व मंत्री) ,मौलाना अब्दुल मन्नान मुफ्ताही, मौलाना अब्दुल नूर सिराजी झंडानगरी, मौलाना अब्दुर्रहमान लैसी मदनी,मौलाना जमील साहब, मास्टर शमशुल हुदा साहब, मास्टर बशीर फारूकी, मास्टर रुस्तम अली , मास्टर शेष दत्त पाठक, मास्टर हजारी प्रसाद द्विवेदी, मास्टर हबीबउल्लाह, मास्टर ज़ुबैर (प्रिन्सिपल रफी अहमद किदवई जूनियर हाई स्कूल ककरा पोखर) जावेद अहमद( समाजी कार्यकर्ता) ,राजू चौधरी,मास्टर शफीउर्रहमान इत्यादि और बहुत अधिक संख्या में इलाके के लोगों ने भी शिरकत की।।
वरिष्ठ लोगों ने शिरकत करने के बाद अपने विचारों को भी साझा किया,
डॉक्टर अब्दुल हक लैसी ( वरिष्ट ऐक्टिविस्ट ) के अनुसार,
मेरा अजम परवाज यहां तक तो हमे ले आया
बंदिश-ए-कैद न टूटे तो कफस ले के उड़ूं।।।