
तीसरे खलीफा हज़रत उस्माने ग़नी की यौमे शहादत पर हुई फातिहा ख़्वानी
हज़रत उस्मान, हज़रत अबू उबैदा, हज़रत शाह आले रसूल व हज़रत नईमुद्दीन का उर्स-ए-पाक अकीदत से मना।
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

दीन-ए-इस्लाम के तीसरे खलीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उस्माने ग़नी रदियल्लाहु अन्हु की यौमे शहादत पर मुस्लिम घरों और मकतब इस्लामियात तुर्कमानपुर, तकिया कवलदह रसूलपुर, सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाज़ार, चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में गुरुवार को क़ुरआन ख़्वानी, फातिहा ख़्वानी व दुआ ख़्वानी हुई। इसके साथ ही सहाबी-ए-रसूल हज़रत सैयदना अबू उबैदा आमिर बिन जर्राह रदियल्लाहु अन्हु, हज़रत सैयद शाह आले रसूल अहमदी अलैहिर्रहमां व हज़रत सैयद मोहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक भी अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया।
सब्जपोश हाउस मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने कहा कि अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उस्माने ग़नी ‘पैग़ंबर-ए-आज़म हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम’ के दामाद व दीन-ए-इस्लाम के तीसरे ख़लीफ़ा हैं, जिन्हें पैग़ंबर-ए-आज़म ने ज़िन्दगी में ही जन्नती होने की खुशख़बरी दी। आप पैग़ंबर-ए-आज़म पर उतरने वाली आयतों को लिखा करते थे। दीन-ए-इस्लाम के पहले खलीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत अबू बक्र रदियल्लाहु अन्हु की दावत पर आपने दीन-ए-इस्लाम क़ुबूल फ़रमाया। आपके निकाह में पैगंबर-ए-आज़म की दो साहबज़ादियां एक के बाद एक आईं। आपके जज़्बा-ए-दीन, हया, सख़ावत और अल्लाह की राह में ख़र्च करने के अनगिनत वाक़िअ़ात आज भी तारीख़ में दर्ज है। हदीस में है कि पैगंबर-ए-आज़म ने फरमाया हर नबी का एक रफ़ीक़ (साथी) है और मेरा रफ़ीक़ यानी जन्नत में उस्मान इब्ने अफ़्फ़ान है। आपको क़ुरआन शरीफ़ की तिलावत के दौरान 18 ज़िल हिज्जा 35 हिजरी बरोज़ जुमा शहीद कर दिया गया। आपका मजार जन्नतुल बक़ी, मदीना शरीफ़ में है।
हाफ़िज़ आरिफ ने कहा कि हज़रत सैयद शाह आले रसूल 13वीं सदी हिजरी के अकाबिर औलिया में से थे। आप आलिमे बाअमल, निडर, बेबाक, शफ़ीक, मेहरबान थे। ग़रीब व मिस्कीन की ज़रूरतों को पूरी करते थे। उलूम ज़ाहिर व बातिन में माहिर थे। आपके सबसे मशहूर व मारूफ मुरीद व खलीफा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमां हैं। आपका विसाल 18 ज़िल हिज्जा 1296 हिजरी में हुआ।
चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर के इमाम हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने कहा कि हज़रत अबू उबैदा आमिर बिन जर्राह के वालिद का नाम अब्दुल्लाह व वालिदा का नाम उमैमा है। आप दीन-ए-इस्लाम क़ुबूल करने वाले अव्वल सहाबा किराम में शामिल हैं। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के ऐलाने नुबूवत के बाद आपने दूसरे दिन हज़रत अबू बक्र रदियल्लाहु अन्हु की दावत से दीन-ए-इस्लाम अपनाया। आपने बेशुमार तक़लीफें बर्दाश्त कीं मगर दीन-ए-इस्लाम नहीं छोड़ा। पैग़ंबर-ए-आज़म ने आपकी ज़िन्दगी में ही आपको जन्नती होने की खुशख़बरी दी। पैग़ंबर-ए-आज़म ने फरमाया है कि ‘हर उम्मत का एक अमीन होता है और इस उम्मत के अमीन अबू उबैदा आमिर बिन जर्राह हैं।’ आपने कुफ्र के खिलाफ तमाम जंगों में शिरकत की। आप बहुत बहादुर थे। आपकी कयादत में मुसलमानों ने उस वक्त की सबसे बड़ी ताकत रूम से टक्कर ली और कामयाबी हासिल की। आप बहुत इबादतगुजार व जानो दिल से पैग़ंबर-ए-आज़म पर फिदा थे। आपका विसाल 19 ज़िल हिज्जा 18 हिजरी में हुआ। आपका मजार जॉर्डन में है।
कारी ओबैदुल्लाह ने कहा कि हज़रत मौलाना सैयद मोहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी की पैदाइश 21 सफर 1300 हिजरी को मुरादाबाद में हुई। आपके वालिद का नाम हज़रत मौलाना सैयद मोईनुद्दीन अलैहिर्रहमां है। आप आठ साल की उम्र में हाफ़िज़-ए-क़ुरआन हुए। आप आलिम, मुफ़्ती, क़ाज़ी और मुफस्सिर थे। आप हदीस, तफसीर, फिक्ह, फलसफा और इल्मे इस्तदलाल के माहिर थे। आपने इल्मे तिब की तालीम भी हासिल की। आपने बहुत सी मशहूर किताबें लिखीं। आपने दीन-ए-इस्लाम की तबलीग के लिए अज़ीम कारनामें अंजाम दिए। आपका विसाल 18 ज़िल हिज्जा 1367 हिजरी को हुआ। आपका मजार मदरसा जामिया नईमिया मुरादाबाद में है।
अंत में इसाले सवाब पेश करते हुए महफिल समाप्त हुई। सलातो सलाम पेश कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। उर्स-ए-पाक में आसिफ रज़ा, हाफ़िज़ आमिर हुसैन, अजमत अली, रहमत अली, मोहम्मद फैज, मोहम्मद ज़ैद, हाफ़िज़ उमर, शारिक अली, सैफ अली, फुजैल अली, फैज़ान, सज्जाद अहमद, मुख्तार अहमद, शाहिद अली, तारिक अली, असलम खान, आरिफ खान आदि ने शिरकत की।