
बार बार यह सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर भाजपा ने अभी क्यों सावरकर विमर्श शुरू किया? क्यों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सावरकर का प्रसंग छेड़ा और उनके नाम के साथ कलंक की तरह बरसों से चिपके माफी मांगने वाले मुद्दे पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि महात्मा गांधी के कहने से सावरकर ने अंग्रेजों से माफीनामे वाली चिट्ठी लिखी थी? राजनाथ सिंह के यह प्रसंग छेड़ने के तुरंत बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अंडमान-निकोबार द्वीप गए और वहां सेलुलर जेल में जाकर विनायक दामोदर सावरकर को श्रद्धांजलि दी। वे उस कमरे में गए, जहां सावरकर को कैद रखा गया था और उनको श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वीर सावरकर की देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। Savarkar bjp and RSS
इससे ठीक पहले आरएसएस के प्रति श्रद्धा रखने वाले एक कथित इतिहासकार ने सावरकर पर दो खंड में किताब लिखी, जिसके पहले खंड का हिंदी और मराठी में अनुवाद भी हुआ। उस किताब में किए गए कई दावों को लेकर भी चर्चा हो रही है। यह भी कम हैरान करने वाली बात नहीं है कि अपेक्षाकृत तटस्थ समझे जाने वाले सबसे तेज चैनल के सेकुलर माने जाने वाले मराठी पत्रकार ने चैनल के एक बड़े कार्यक्रम में इतिहास के दुरुपयोग जैसे भारी भरकम विषय पर चर्चा कराई, जिसमें सावरकर पर किताब लिखने वाले कथित इतिहासकार ने आधे-अधूरे तथ्यों और हिंदुत्व की प्रयोगशाला में विनिर्मित तर्कों के आधार पर देश के सारे जाने-माने इतिहासकारों की धज्जियां उड़ाईं।
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यह सब अनायास नहीं हो रहा है और न निर्वात में हो रहा है। यह एक बड़े डिजाइन का हिस्सा है, जो केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और अपने गठन के सौ साल पूरे करने जा रहे राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की सुनियोजित योजना से जुड़ा है। असल में निरंतर चुनाव जीतते जाने के बावजूद विचार और धारणा के स्तर पर देश की दूसरी राजनीतिक पार्टियों से पिछड़ रही भाजपा और उसके पितृ संगठन संघ के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे अब तक जिस लक्ष्य का प्रचार करते रहे हैं या जिस लक्ष्य के लिए जीने-मरने की बातें करते रहे हैं उसके लिए एक ठोस विचार और एक या अनेक नायक तलाशे जाएं और उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाए। विचार और नायक की तलाश ही भाजपा, संघ या उससे जुड़े अनुषंगी संगठनों के नेताओं को कभी गोडसे के पास ले जाती है तो कभी सावरकर के पास। उनकी बेचैन खोज का प्रयास उन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस और विवेकानंद तक भी ले जाता है। लेकिन ये शख्सियतें वैचारिक रूप से इतनी भिन्न हैं कि उन्हें अपना बनाना मुश्किल लग रहा है। संघ और भाजपा की सर्च की सूई अभी सावरकर पर अटकी है। तभी सावरकर को श्रद्धांजलि देते हुए अमित शाह ने यह भी कहा कि भाजपा का जन्म सत्ता हासिल करने के लिए नहीं, बल्कि भारत को महान बनाने के लिए हुआ है।
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अब सवाल है कि भाजपा की नजर से भारत महान कैसे बनेगा? उसका एक ही तरीका है कि भारत हिंदू राष्ट्र बने, जिसकी परिकल्पना विनायक दामोदर सावरकर ने उस समय की थी, जब राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का गठन भी नहीं हुआ था। आरएसएस के संस्थापक नेताओं ने तो सिर्फ सावरकर के विचारों को अपने यहां जगह दी और उसका प्रचार किया। यहीं कारण है कि संघ से कभी भी नहीं जुड़े रहने के बावजूद सावरकर हमेशा संघ और भाजपा के लिए पूजनीय रहे। अब यहां सावरकर के बारे में वस्तुनिष्ठ तरीके से कुछ चीजों को समझना जरूरी है। अमित शाह ने उनके बारे में जब कहा कि उनकी देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है तो वे काफी हद तक सही थे। सावरकर देशभक्त थे और वे अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष कर देश को आजाद कराना चाहते थे। इस बात पर महात्मा गांधी से उनके मतभेद थे। लेकिन महात्मा की तरह उनका भी लक्ष्य भारत को अंग्रेजों से आजाद कराना था।
यह मामूली बात नहीं है कि 20वीं सदी की शुरुआत में सावरकर जब कानून की पढ़ाई के लिए ब्रिटेन गए तो वहां उन्होंने बैरिस्टर बनने की महत्वाकांक्षा पूरी करने की बजाय सशस्त्र विद्रोह के जरिए अंग्रेजों की सत्ता पलटने की योजना पर काम किया। इसकी वजह से उनको गिरफ्तार किया गया और ब्रिटेन से निकाल दिया गया। भारत वापसी के रास्ते में उन्होंने जहाज से कूद कर भागने का प्रयास किया लेकिन पकड़े गए और भारत लाकर जेल में डाल दिए गए। वे 12 साल तक जेल में रहे और उसमें भी ज्यादातर समय अंडमान की सेलुलर जेल में, जहां उन्होंने अंग्रेजों की भयावह प्रताड़ना झेली। यह सही है कि वे जेल से अंग्रेजों को माफी की चिट्ठी लिखते रहे और राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहने का वादा भी करते रहे। लेकिन इससे उनके संघर्ष और उनकी झेली गई यातनाओं का महत्व कम नहीं हो जाता है। बाद के समय में अंग्रेजों से मिल जाने को लेकर जो लोग सावरकर पर हमला करते हैं उनको याद रखना चाहिए कि 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास होने से पहले तक कांग्रेस भी अंग्रेजों के शासन में ही भागीदारी का आंदोलन कर रही थी। वह अंग्रेजी राज में हिस्सा या स्वायत्तता की मांग कर रही थी। इतना ही नहीं पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास होने के बाद भी कांग्रेस ने अंग्रेजी राज के कानूनों के मुताबिक ही स्वायत्त सरकार भी बनाई थी। सावरकर की देशभक्ति या अंग्रेजी राज से उनकी लड़ाई एक गौरवशाली अध्याय है, जिसके लिए इंदिरा गांधी की सरकार ने 1970 में उनके नाम से डाक टिकट जारी किया था।
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सावरकर के जीवन और विचार का दूसरा और विवादित अध्याय हिंदू-मुस्लिम को दो अलग अलग राष्ट्र मानने की उनकी अवधारणा का है। वे मानते और कहते रहे हैं कि भारत भूमि उसी की है, जो इसे अपनी मातृभूमि और पितृभूमि के साथ साथ अपनी पुण्यभूमि भी मानता है। इस लिहाज से मुसलमानों और ईसाइयों का इस देश पर कोई दावा नहीं बनता है क्योंकि उनकी पुण्यभूमि क्रमशः मक्का और वेटिकन में है। सावरकर के इसी विचार को गुरूजी के नाम से मशहूर हुए संघ के दूसरे सर संघचालक एमएस गोलवलकर ने अपनी किताब ‘वी ऑर ऑवर नेशनहुड डिफाइन’ यानी ‘हम या हमारी राष्ट्रीयता परिभाषित’ में विस्तार से लिखा। उन्होंने सावरकर से एक कदम आगे बढ़ कर कहा कि हिंदुस्तान में रहने वाले हर गैर हिंदू को हिंदू धर्म, संस्कृति और भाषा को स्वीकार करना होगा, इसके प्रति सम्मान दिखाना होगा और इसका गुणगान करना होगा। यह विचार नस्लवादी होने के साथ साथ भारत की बहुलता की संस्कृति और बाद में अंगीकार किए गए संविधान की बुनियादी भावना के विपरीत है।
लेकिन संघ परिवार और उसकी राजनीतिक शाखा भारतीय जनता पार्टी निरंतर सावरकर और गोलवलकर के विचारों को अपना लक्ष्य मान कर उसे हासिल करने के प्रयास में लगे रहे हैं। संघ के 1925 में बनने के बाद पहली बार उसे अब लग रहा है कि इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। इसलिए दूसरे प्रयासों के साथ साथ बड़ी शिद्दत से नायकों की तलाश की जा रही है। सावरकर उनके पुराने नायक हैं। वे हिंदू राष्ट्र के विचार का प्रतीक तो हैं ही साथ ही आजादी की लड़ाई के भी नायक हैं। संघ, भाजपा और हिंदुत्व की दूसरी ताकतें उनके सहारे इस आरोप का जवाब दे सकती हैं कि उनकी आजादी की लड़ाई में कोई हिस्सेदारी नहीं थी। सावरकर के सहारे संघ और भाजपा के दो लक्ष्य पूरे हो रहे हैं। पहला, आजादी के एक नायक के जरिए हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को वैधता दिलाई जा रही है और दूसरा, सहिष्णु, समावेशी और सर्वधर्म समभाव के विचार वाले महात्मा गांधी के बरक्स एक प्रतिविचार खड़ा किया जा रहा है। जैसे पटेल को नेहरू से बढ़ा दिखाने का अभियान चल रहा है वैसे ही आने वाले दिनों में सावरकर को गांधी से महान बनाने का अभियान चलेगा। savarkar bjp and RSS