
गुजरात के मुंद्रा पोर्ट पर तीन टन हेरोइन पकड़े जाने के बाद डीआरआई की टीम ने देश के कई हिस्सों में छापेमारी की। डीआरआई की टीम ने गुजरात में अहमदाबाद, गांधीधाम और मांडवी में छापेमारी की। उसके बाद दिल्ली और चेन्नई में भी छापे मारे गए। लेकिन क्या किसी को पता है कि इन छापों में क्या मिला? क्या पता चला? किसकी गिरफ्तारी हुई? क्या जून में आई 25 टन हेरोइन का कोई सुराग इससे मिला? इन सवालों का जवाब किसी को नहीं पता है। लेकिन अगर घटनाक्रम पर नजर डालें तो कई चीजें अपने आप स्पष्ट हो जाएंगी। Heroin Seized Mundra Port
मुंद्रा पोर्ट पर तीन टन हेरोइन पकड़ने वाली टीम के हवाले से ही खबर आई कि जून में 25 टन हेरोइन उतरी थी। और यह संयोग है कि उसके अगले महीने 10 जुलाई को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्पेशल टीम ने साढ़े तीन सौ किलो हेरोइन जब्त की, जिसकी कीमत ढाई हजार करोड़ रुपए लगाई गई। यह दिल्ली में जब्त की गई हेरोइन की सबसे बड़ी खेप थी। पुलिस का कहना है कि नशीले पदार्थों की यह खेप समुद्र के रास्ते मुंबई पहुंची थी और वहां से इसे दिल्ली लाया गया था और यहां से इसे मध्य प्रदेश के शिवपुरी ले जाना था, जहां इसे और फाइन बनाने की फैक्टरी है। वहां से इसे पंजाब भेजा जाना था। पुलिस ने इस सिलसिले में एक अफगानी नागरिक को गिरफ्तार किया है। दो लोग फरीदाबाद से गिरफ्तार किए गए हैं और एक कश्मीर में रहने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। इससे पहले मई के महीने में दिल्ली पुलिस ने 125 किलो हेरोइन जब्त की थी, जिस मामले में दो अफगानी नागरिक पकड़े गए थे। अगस्त में दिल्ली पुलिस ने 48 करोड़ रुपए की हेरोइन और जब्त की।
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सोचें, समुद्र के रास्ते हेरोइन मुंबई पहुंची, मुंबई से उसे दिल्ली लाया गया, दिल्ली से इसे मध्य प्रदेश जाना था और वहां से बिक्री के लिए इसे पंजाब भेजना था। इस रैकेट में मुंबई से लेकर कश्मीर, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश और पंजाब के लोग शामिल हैं। पुलिस का कहना है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों देशों से इसके तार जुड़े हैं। पुलिस इसकी नारको टेरेरिज्म के पहलू से भी जांच कर रही है। सवाल है कि इस जांच से क्या हासिल हो रहा है और क्या पुलिस इस पूरे खेल में शामिल असली लोगों तक पहुंच पा रही है?
देश के दूसरे सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी के स्वामित्व वाले मुंद्रा पोर्ट पर तीन हजार किलो हेरोइन पकड़ा जाना भी महज संयोग रहा अन्यथा यह भी जून के 25 टन हेरोइन की तरह चुपचाप निकल ही जाता। असल में 15 सितंबर को कोस्ट गार्ड्स ने गुजरात के समुद्र तट के आसपास ईरान की एक नौका देखी और गुजरात के आतंकवाद रोधी दस्ते के साथ मिल कर उस नौका को रोका और तलाशी ली। उसमें से 30 किलो हेरोईन मिली, जिसकी कीमत कोई डेढ़ सौ करोड़ रुपए है। इस मामले में सात लोग पकड़े गए। इतनी बड़ी बरामदगी से उत्साहित एजेंसियों ने उसी दिन मीडिया को बता दिया कि उसे कितनी बड़ी कामयाबी मिली है। पकड़े गए लोगों से पूछताछ में पता चला कि पकड़ा गया माल कुल खेप का एक फीसदी है और तीन हजार किलो माल कंटेनर में है, जो कंटेनर मुंद्रा पोर्ट पर है। इसके बाद एजेंसियों के लिए मजबूरी हो गई है कि वे मुंद्रा पोर्ट का नाम लें और बताएं कि वहां से क्या बरामद हुआ है। अगर संयोग से समुद्र तट में नौका नहीं पकड़ी गई होती या पकड़े जाने के समय ही पता चल जाता कि असली माल कहां है तो क्या पता किसी को कुछ पता चलता भी या नहीं!
तर्क के लिए कहा जा सकता है कि अगर बंदरगाह पर नशीली दवा पकड़ी गई है तो इसमें बंदरगाह के स्वामित्व वाली कंपनी का क्या कसूर है या इसमें उसकी क्या भूमिका है? सोशल मीडिया में यह भी बहस है कि अगर यह अडानी का खेल होता तो क्या एजेंसियों की हिम्मत होती इसे पकड़ने की? लेकिन सवाल है कि तीन टन हेरोइन पकड़ी गई तो उससे पहले 25 टन हेरोइन नहीं भी तो पकड़ी गई थी? सो, ऐसी किसी बहस में उलझने की बजाय इस मामले की गंभीरता को समझने की जरूरत है। यह समझना जरूरी है कि यह कोई विजयवाड़ा के आशी ट्रेडिंग का काम नहीं है, बल्कि कोई बड़ा ड्रग कार्टेल यह काम कर रहा है। इसकी सचाई सामने आना इसलिए जरूरी है क्योंकि एक तो यह युवाओं को बरबाद करके देश को खोखला कर रहा है और दूसरे लाखों करोड़ रुपए के इस कारोबार के फलने-फूलने का बड़ा असर देश के राजनीतिक-आर्थिक सिस्टम पर भी पड़े बिना नहीं रहेगा।